बुधनी टाइम समाचार पत्र शुजालपुर.. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के परीक्षाओं के टाइमटेबल आ चुके हैं। यूं तो सभी बच्चों पर परीक्षा का बड़ा दबाव होता है। लेकिन जिन बच्चों के बोर्ड एग्ज़ाम होते हैं, उन्हें चौतरफ़ा दबाव झेलना पड़ता है: परीक्षा का, पीयर ग्रुप यानी सहपाठियों का, माता-पिता का और आने वाले परिणाम का भी, क्योंकि इस पर उनका आगे का दाख़िला निर्भर करता है। ऐसे में अभिभावकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। साल के इस समय तक बच्चे इतनी पढ़ाई कर चुके होते हैं कि यदि माहौल को सही तरह से व्यवस्थित किया जाए तो वे बेहतरीन प्रदर्शन कर सकते हैं। रूपरेखा बनाएं और धैर्य रखें कांदीवली, मुंबई स्थित लोखंडवाला स्कूल की हिंदी शिक्षिका रीना पंत कहती हैं, ‘जब परीक्षा का टाइमटेबल सामने हो तो आप धैर्य रखते हुए अपने बच्चे के साथ इस बात की रूपरेखा बनाएं कि अब परीक्षाओं के लिए उसे किस तरह पढ़ना है।’ बच्चे ख़ुद ही एग्ज़ाम के लिए बहुत तनाव लेते हैं, यह बताते हुए वे कहती हैं, ‘यूं तो यह रिविज़न का समय है, लेकिन यदि आपके बच्चे की तैयारी पूरी नहीं है तो भी दहशत में न आ जाएं। ज़रूरत हो तो शुरू से तैयारी कराएं, क्योंकि तैयारी न होने पर भी यदि आप हिम्मत बनाए रखेंगे तो बच्चा भी हिम्मत रखेगा और तैयारी कर लेगा। यदि अभिभावक कामकाजी हैं तो उन्हें छुट्टी लेने के बारे में सोचना चाहिए, ताकि बच्चे के तनाव को कम करने में सहायक हो सकें। घर का माहौल सकारात्मक और सौहार्दपूर्ण हो। हर बात पढ़ाई से संबंधित न हो मुंबई में रहने वाली लक्ष्मी आनंद का बेटा दसवीं बोर्ड की परीक्षा देने वाला है, वह बताती हैं, ‘टाइमटेबल आने के बाद से लगभग हर अभिभावक अपने बच्चे से केवल पढ़ाई और परीक्षा की ही बात करता है। इससे बच्चे पर बेवजह दबाव बनता है। यूं भी बच्चे अपनी परीक्षा का टेंशन लेते ही हैं। और अच्छे अंक लाने के लिए जितनी ज़रूरी पढ़ाई है, उतना ही ख़ुश रहना भी। दिन में एक-दो बार बच्चों को छोटे ब्रेक दें, जिसमें वे गाने सुनें, मज़ेदार वीडियो देखें और ख़ुद को तरोताज़ा कर सकें। अभिभावक भी इसमें शामिल हो सकते हैं।’ एक अध्ययन में मनोवैज्ञानिक कैरी गॉडविन और उनकी टीम ने पाया कि छोटी क्लास के बच्चे लंबे समय तक एक ही चीज़ पर ध्यान नहीं लगा पाते। पढ़ाई के बीच मिले छोटे ब्रेक से तनाव कम होता और उत्पादकता बढ़ती है।