गोष्ठी में कवियों ने सुनाई इंद्र धनुष साहित्य एवं सामाजिक परिषद शुजालपुर के बैनर तले बसंत उत्सव के तहत मासिक काव्य गोष्ठी हुई। यह गोष्ठी समिति के अध्यक्ष हरीशचंद्र सक्सेना के निवास चित्रांश पैलेस गांधी कालोनी में आयोजित की गई थी। जिसमें शहर के नामी कलम कारों ने एक से बढ़कर एक बसंत और होली फाग की कविताएं सुनाई। गोष्ठी में हरबान सिंह अनुज ने अंधों के शहर में आईनों का व्यापार कर बैठे, हम खंजर हाथ न ले सकें इसलिए कलम की पैनी धार कर बैठे, मोहन वैष्णव ने, रोशनी रात भर दिल जलाती रही, शम्मा रो रो के आंसू बहाती रही, दर्द भरी गजल परोसी। इसी तरह कवि रमेश चंद्र परमार ने रंग बसंती लेकर आया खुशियों की बौछार, आओ मिलकर मनाए रंगीला होली का त्यौहार, मनोहर बौद्ध मसखरा ने कैसे कह दे कहां हैं डाकू, जंगल में या संसद में, कैद हुआ है लोकतंत्र भी राजवंश की चंगुल में, सब देते बढ़ावा राजवंश को इन्हें क्यों लोकतंत्र से बैर है, चौपट राजा राज करे कैसा ये अंधेर हैं, कविता सुनाई। इस गोष्ठी में नरेन्द्र सक्सेना, ओमप्रकाश सक्सेना, विक्रम सिंह यादव, लीलाधर तिवारी, अनिल आर्य ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की। वसंत और होली फाग की कविताएं