अमेजन-नेटफ्लिक्स की तरह लोकल बोलियों की फिल्मों और कहानियों को मौका दे रही 300 करोड़ की ‘स्टेज’ कंपनी इन दिनों सुर्खियों में है। हाल ही में टीवी शो में इसके तीनों इंजीनियर को-फांउडर्स ने अपने पहले स्टार्टअप के रातोंरात डूबने और फिर उससे बड़ी कंपनी खड़ी कर देने की कहानी सुनाई। इसमें दिलचस्प है इनके संघर्ष का इंदौर कनेक्शन..। ये तीनों दोस्त इंदौर में जन्मे नहीं हैं लेकिन इंदौर के ‘टैलेंट रिटेंशन’ के दम पर इन्होंने हौसला नहीं खोया और नई कंपनी खड़ी कर दी। इंदौर में स्टार्टअप का यह सिलसिला कैसे शुरू हुआ, जब पहली कंपनी डूब गई तो कैसे इंदौर के ही ‘टैलेंट रिटेंशन’ से नई कंपनी बनाने में कामयाब रहे, कौन सी बात उन्हें टीम क्रिटिसाइज से बचाते आ रही है, जानिए स्टेज के CEO विनय सिंघल (हरियाणा), को-फांउडर्स शशांक वैष्णव (धार-मप्र) और प्रवीण सिंघल की जुबानी… मैं (विनय सिंघल) हरियाणा से जब पढ़ने चेन्नई गया तो शशांक वैष्णव (मध्यप्रदेश) वहीं मिले। दोनों ने साथ में कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की। मेरा रियल भाई प्रवीण भी पढ़ने भियाणी से चेन्नई आ गया था। उसने इंफॉरमेशन से जुड़ा अलग कोर्स चुना। हमें परिवार से यही कहा गया था कि ‘औकात से बड़ा सोचकर कर दिखाना और करना है’। पर नहीं पता था कि सपना कहां पूरा होगा। 2013-2014 तक तीनों चेन्नई में पढ़ाई पूरी कर स्टार्टअप का सोच रहे थे। पर शुरुआत कहां से करें, समझ नहीं आ रहा था। फेसबुक पर पेज बनाए, उससे कुछ आइडियाज आते चले गए। ऑफिस के लिए लोकेशन ढूंढ़ीं तो पता चला कि चेन्नई में कितना भी बड़ा, अलग स्टार्टअप करेंगे, यहां वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिलने वाला क्योंकि वहां गली-गली में स्टार्टअप हैं। दिल्ली, बेंगलुरु में भी यही हाल था। तब हमारे पास एप और वेबसाइट बनाने का काम था। इसी बीच फरवरी 2014 में मैं बीमार हो गया। तब दोस्त शशांक का परिवार बखतगढ़-धार से इंदौर रहने आ चुका था। शशांक की मम्मी से बात हो रही थी तो उन्होंने मुझसे फोन पर कहा कि ‘तू कुछ दिन के लिए मेरे पास इंदौर ही आ जा, वर्ना वहां तेरी तबीयत ज्यादा बिगड़ जाएगी।’ तब मूड भी थोड़ा ठीक नहीं था इसलिए मैं भी इंदौर आ गया। एक-दो दिन में तबीयत ठीक हो गई, तो मैं यूं ही शहर घूमने निकल गया। सोचा कि यहां के स्टार्टअप के बारे में पता करता हूं। काफी ढूंढ़ा तो यकीन मानिए कि कोई यूनिक स्टार्टअप वाले मिले ही नहीं। तब इंजीनियर बाबू नाम के स्टार्टअप का पता चला और उनके फाउंडर महेंद्र प्रताप सिंह से बातचीत की। वे तब बेंगलुरु से कुछ समय पहले ही इंदौर शिफ्ट हुए थे। महेंद्र प्रताप ने तब का अनुभव सुनाते हुए कहा था कि ‘इंदौर टियर 2 सिटी में आता है। यहां एक मेंटलिटी देखने को मिल रही है कि लोग आइडिया शेयर करने से डरते हैं, उन्हें लगता है कि चोरी हो जाएगा।’ तब मैंने उनसे पूछा कि यदि ऐसा है तो आप बेंगलुरु से इंदौर क्यों आ गए? महेंद्र प्रताप ने तब मुझे बताया कि भले कुछ हो पर इस शहर में बहुत दम है। यहां छोटी, बड़ी ढाई से 3 हजार आईटी कंपनीज हैं… हिस्टोरिकल ट्रेडर सिटी है… व्यापारियों का शहर है, सेंट्रल इंडिया का एजुकेशन हब है.. टैलेंट रिटेंशन है...। यहां के 40 किलोमीटर के दायरे में 100 कॉलेज हैं। यह सुनकर मेरे मन में ख्याल आया कि यहां तो सबकुछ है, फिर कहीं और क्यों जाना है। मैंने तुरंत चेन्नई में फोन कर शशांक और प्रवीण से बात की। उन्हें बताया कि हम इंदौर से ही अपना स्टार्टअप शुरू करेंगे। मैंने इंदौर की पूरी कहानी इन्हें सुनाई और कहा कि चेन्नई में कुछ किया तो भीड़ में खो जाएंगे, यहां अगर करके दिखाया तो यहां के तो राजा होंगे। इसके बाद शिखर सेंट्रल में मैंने 1800 वर्गफीट का ऑफिस खरीद लिया। मैं इतने कॉन्फिडेंस में आ गया था कि किराए पर ऑफिस लेने की बजाय खरीदना ही सही समझा..। इसके बाद फर्नीशिंग पूरी होने पर दोनों को भी जून 2014 में यहां बुला लिया। तीन युवा आंत्रप्रिन्योर, जिन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी रातोंरात बंद हुई तो खड़ी कर दी स्टेज कंपनी। तीन युवा आंत्रप्रिन्योर, जिन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी रातोंरात बंद हुई तो खड़ी कर दी स्टेज कंपनी। यहीं से शुरू हुई फेसबुक पर हमारे कंटेंट आइडिया ‘विटीफिड’ की यात्रा हमने वत्साना टेक्नोलॉजीस कंपनी बनाई जो विटीफीड नाम के फेसबुक पेज के जरिए इंटरनेट मीडिया और कंटेंट उपलब्ध कराने लगी। इसमें न्यूज के अलावा खेल, फैशन, लाइफ स्टाइल, जर्नी, प्रेरणा, हेल्थ से जुड़े कंटेंट देते थे। हिंदी, अंग्रेजी के अलावा स्पेनिश में भी यह कंटेंट होता था। कुछ ही समय में यह दुनिया की दूसरी और भारत की पहली सबसे बड़ी वायरल कंटेंट कंपनी बन गई। यूट्यूब की तरह ख्यात राइटर्स को भी प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराते और ट्रैफिक के हिसाब से पेमेंट करने लगे। सितंबर 2016 में हमने सोहेल खान की प्रोडक्शन फिल्म फ्रीकी अली से पार्टनरशिप की। इसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, एमी जैक्सन और अरबाज़ ख़ान बतौर कलाकार शामिल थे। मई 2017 में इसकी वर्ल्ड अलेक्सा रेटिंग 170 और भारत में 18वीं रेटिंग थी। फेसबुक के इस पेज पर कुछ ही महीने में हमारा ऑनलाइन ट्रैफिक बढ़कर 12 करोड़ तक पहुंच गया। कंटेंट के लिहाज से सबसे ज्यादा यूजर्स अमेरिकन थे, इसलिए हमने दुनिया की सबसे महंगी जगह टाइम्स स्क्वायर पर विटीफिड का ऑफिस खोल दिया। 2018 में कंपनी 300 करोड़ की हो गई। तब भी हमारा हैड क्वार्टर इंदौर ही था। रातोरात ऐसे डूब गई कंपनी सबकुछ बहुत ठीक और प्लान के हिसाब से था। तभी डोनाल्ड ट्रंप ने यह मुद्दा छेड़ दिया कि अमेरिका चुनाव में नॉन अमेरिकन कंपनियां पर्सनल डेटा शेयर कर रही हैं। वोटर्स को प्रभावित कर रही हैं। इसका दबाव फेसबुक पर भी आया। फेसबुक ने ऐसी कंपनियों की लिस्टिंग की तो पता चला कि बाहरी कंपनियों में सबसे ज्यादा अमेरिकन हमारा ही कंटेंट पढ़ रहे हैं। इसके बाद हमारी कंपनी के सभी पेज रातोंरात हटा दिए गए। नवंबर 2018 में हमने रेवेन्यू काफी बढ़ाया था, इसलिए आगे की प्लानिंग पर भी जोर देने लगे थे। 25 नवंबर की रात को हम प्लानिंग करके गए और 26 नवंबर 2018 को सुबह पता चला कि फेसबुक ने हमारा पेज ही डी-प्लेटफॉर्म कर दिया है। हमारा सारा ट्रैफिक फेसबुक से आता था। अमेरिका से आने वाला 6 करोड़ का ट्रैफिक एक झटके में खत्म हो गया और इस कारण ये कंपनी बंद हो गई। फिर क्या था, हम टूट गए। हमें सूझ नहीं रहा था कि क्या करें। हम कुछ दिनों तक बैठकर बातें करते रहें। स्टाफ को तीन महीने तक सैलरी भी पूरी दी। एक दिन ब्रेन स्टोर्मिंग मीटिंग के दौरान तय किया कि हम हार नहीं मान सकते। कंपनी के सभी 95 से ज्यादा कर्मचारियों का टाउनहॉल किया और उनसे कहा कि हम आपको कर्मचारी नहीं, कंपनी का इन्वेस्टर्स बनाना चाहते हैं। अभी हम केवल 25% सैलरी देंगे, बाकी 75% भुगतान आगे जाकर डबल पेमेंट के साथ करेंगे। जैसा कि मैंने बताया था कि आज भी महानगरों की अपेक्षा छोटे शहरों से आए लोगों में टैलेंट रिटेंशन ज्यादा है। यानी यदि किसी से कुछ मिला है तो इमोशनली जुड़ते हैं और कहते हैं कि नहीं हम कहीं नहीं जा रहे, साथ में कुछ करेंगे। यही वजह है कि हमारे 95 के करीब कर्मचारियों में से 56 हमारे साथ ही रुक गए और नए सिरे से हमने स्टार्टटप पर काम किया। तभी ‘स्टेज’ प्लेटफॉर्म का आइडिया आया और ये कंपनी आज इस मुकाम पर आ गई है। बुरा वक्त सबका आता है इसलिए कभी कमियां नहीं गिनाई ऐसा नहीं है कि हमसे गलतियां नहीं हुई या किसी काम में कोई कमजोर नहीं पड़ा। यहां हमने आपस की कमियां गिनाने से बचने का फैसला किया। हम जानते हैं कि आज यदि वो नहीं कर पाया है तो उसका बुरा दिन है या बुरा वक्त है। हो सकता है कल या परसों ऐसा हमारे साथ भी हो। ये रेगुलर प्रोसेस का हिस्सा है, हमने तय किया था कि क्रिटिसाइज करने, कमियां बताने के बजाय अच्छा करने का सुझाव देंगे या बगैर बताए उसकी मदद कर हम वापस उसका कॉन्फिडेंस ला देंगे। ऐसा हम तीनों के साथ दर्जनों बार हुआ है जो कभी मेरे लिए किया गया तो कभी हमने दूसरों के लिए। अब आपस की अंडरस्टैंडिंग पर बात.. बोले- पार्टनरशिप का पार्ट ही हमारी लाइफ में नहीं 1. हम तीनों दोस्त नहीं भाई की तरह जीते हैं। हमने यह कभी नहीं सोचा कि कोई काम पार्टनरशिप में करेंगे। विनय और प्रवीण की तरह शशांक भी उनके भाई बन गए। उनका कहना है कि भाई कभी अलग नहीं होते। कुछ भी हो जाए। पार्टनरशिप का पार्ट कभी हमारे काम में आया ही नहीं। 2. यदि किसी को किसी बड़े स्टेज पर रिव्यू, इंटरव्यू या अन्य किसी कारण से जाने का मौका मिलता है तो हम तय कर लेते हैं कि ये मौका आया है तो इनमें हम तीनों में से बेस्ट कौन है। वही यहां शामिल होगा। आज कहां है कंपनी.. स्टेज में अब 2500 से ज्यादा कलाकार, 35 इम्प्लॉइज स्टेज के सीईओ विनय सिंघल ने कहा- स्टेज ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहां देशी और क्षेत्रीय बोली के कलाकारों को मौका दिया जा रहा है। इसमें हरियाणवी फिल्म भी प्रमोट की गई है। इसके बाद राजस्थानी में लॉन्च की गई है। जल्द ही इसे मालवी, बुंदेलखंडी, मैथिली जैसी लोकल बोलियों में भी बढ़ाया जाएगा। अगले चार से पांच साल में सभी बोलियों को कवर करने का टारगेट कंपनी ने तय किया है। तीनों दोस्तों को जानिए