बुधनी टाइम समाचार पत्र सुजालपुर मध्यप्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग को लेकर एक बार फिर कर्मचारियों ने मोर्चा खोल दिया है। चूंकि कांग्रेस शासित पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दी गई है। लिहाजा चुनावी साल होने से मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी दबाव में है। परेशानी इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग को लेकर कर्मचारी संगठनों ने 5 फरवरी को भोपाल के भेल दशहरा मैदान पर बड़ा धरना प्रदर्शन किया। यहां कर्मचारी संगठनों ने सरकार को अल्टीमेटम देते हुए एक महीने का समय दिया है। उनका कहना है कि सरकार इसे नहीं मानेगी तो हम सरकार बदलने का काम शुरू कर देंगे। कर्मचारी संगठन चुनावी साल का लाभ उठाते हुए आरपार की लड़ाई के मूड में है। पिछले साल 13 से 29 सितंबर तक शिक्षकों ने पुरानी पेंशन स्कीम की मांग को लेकर धरना दिया था। एमपी में अपने ही विधायकों की बगावत के कारण सरकार खो चुकी कांग्रेस हर वर्ग को ललचाने में लगी है। ऐसे में इतने बड़े कर्मचारी वर्ग को साधने के लिए कांग्रेस ने वादा कर लिया है कि अगर वो सरकार में आती है तो पुरानी पेंशन स्कीम लागू करेगी। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय बंधु कहते हैं कि यदि सरकार इस समय सीमा में निर्णय नहीं ले पाती है तो कर्मचारी सरकार बदलने का काम करेंगे।344 करोड़ रुपए की बचत होगी मप्र सरकार यदि राजस्थान की गहलोत सरकार की तर्ज पर पुरानी पेंशन योजना को लागू करती है तो 12 साल तक आर्थिक बोझ नहीं आएगा, बल्कि उसे प्रदेश के 3.35 लाख कर्मचारियों के अंशदायी पेंशन के तहत हर माह 14% की हिस्सेदारी करीब 344 करोड़ रुपए की फिलहाल बचत होगी। कैसे होगा ये सब जानिए पूरा गणित। 1 जनवरी 2005 के बाद प्रदेश में 3.35 लाख से ज्यादा कर्मचारी सेवा में आ चुके हैं, जो पेंशन नियम 1972 के दायरे में नहीं आते हैं। 2.87 लाख अध्यापक, जो 2008 में टीचर बने। जिन पर न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) लागू है। प्रदेश में जिन कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ मिलना है, उनसे ज्यादा संख्या नई पेंशन स्कीम वालों की है, क्योंकि करीब डेढ़ लाख संविदाकर्मी भी नियमितिकरण की मांग कर रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि अंशदायी पेंशन में कर्मचारी के मूल वेतन से 10% राशि काटकर पेंशन खाते में जमा कराई जाती है और 14% राशि सरकार मिलाती है। रिटायर होने पर 50% राशि एकमुश्त दी जाती है और बाकी 50% से पेंशन बनती है। यह राशि अधिकतम 7 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होती। इसी वजह से कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं। आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष भरत पटेल बताते हैं कि 1 जनवरी 2005 के बाद 3.35 लाख अधिकारी-कर्मचारी सरकारी नौकरी में आए हैं। इसमें सबसे ज्यादा टीचर हैं, जिनकी संख्या 2.87 लाख है। सरकार हर माह उनके मूल वेतन का 14% अंशदान राशि (करीब 7 हजार रुपए) खाते में जमा करती है। इससे सरकार को हर माह 210 करोड़ रुपए को वहन करना पड़ रहा है। 48 हजार स्थाई कर्मचारियों पर सरकार की 3 हजार रुपए के हिसाब से 134 करोड़ रुपए अपनी हिस्सेदारी है। यानी सरकार पर हर माह कुल 344 करोड़ रुपए का बोझ है। पटेल बताते हैं कि इन कर्मचारियों व अधिकारियों की 30 साल की नौकरी 2035 में पूरी होगी। यदि पुरानी पेंशन योजना बहाल होती है तो सरकार पर आर्थिक बोझ 12 साल बाद आएगा। जबकि इन 12 सालों में सरकार को हर माह 344 करोड़ रुपए की बचत होगी। मध्य प्रदेश पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि सरकारी सेवाओं में 1 अप्रैल 2004 से फैमिली पेंशन खत्म कर दी गई थी। सरकार का यह कदम ठीक नहीं था। पेंशन ही एक ऐसा आकर्षण है, जो लोगों को सरकारी सेवाओं में आने के लिए आकर्षित करता है। ओपीएस को मप्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश में लागू होना चाहिए। टुकड़े-टुकड़े में राज्य स्तर पर इसे लागू करने से कर्मचारियों में असमानता का भाव आएगा, जो प्रशासनिक दृष्टि से हानिकारक है।