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भोजराज सिंह पंवार
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Sanjeev Bikhchandani: कभी कंप्यूटर खरीदने के लिए नहीं थे पैसे, एक सोच से ले आए भारत में स्टार्टअप की क्रांति

नौकरी डॉट कॉम, 99 एकर्स डॉट कॉम व जीवनसाथी डॉट कॉम इत्यादि तमाम प्लेटफॉर्म के संस्थापक संजीव बिखचंदानी के एक छोटे-से कमरे से अरबपति बनने तक के सफर में बाधाएं तो तमाम आईं, लेकिन उन्होंने अपने हौसले और जुनून को कम नहीं होने दिया। आज वह लगभग साढ़े तीन अरब डॉलर के कारोबार के मालिक हैं... बचपना एक ऐसा समय होता है, जिसमें बच्चों के सपने हर दिन बदलते रहते हैं। कोई डॉक्टर बनने का सपना देखता है, तो कोई इंजीनियर, तो कोई पायलट। सौ में इक्का-दुक्का बच्चे ही ऐसे होते हैं, जो बचपन से आंत्रप्रेन्योर बनने का ख्वाब देखते हैं। ऐसा ही सपना संजोए एक बचपना था इंफो एज के संस्थापक और कार्यकारी उपाध्यक्ष संजीव बिखचंदानी का। 10 साल की उम्र में सुनील गावस्कर, तो 11 साल की उम्र में राजेश खन्ना बनने का सपना देखने वाले संजीव बिखचंदानी के ऊपर बारह साल की उम्र में ही बिजनेस की दुनिया में कुछ कर गुजरने का जुनून सवार हो गया था। उन्हें लगता था कि बल्लेबाज या अभिनेता बनने की तुलना में उद्यमी बनना आसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज जिस मुकाम पर वह हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें न जाने कितनी चुनौतियों और कठिनाईओं से लड़ना पड़ा। स्टीव जॉब्स के प्रशंसक और जेडी सैलिंगर की कैचर इन द राई किताब पढ़ने के शौकीन संजीव बिखचंदानी का एक छोटे-से कमरे से लगभग साढ़े तीन अरब डॉलर के साम्राज्य तक पहुंचने का सफर यह बताता है कि दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से अपने असंभव सपने को भी पूरा किया जा सकता है। उन्हें भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। कई लोग तो उन्हें स्टार्टअप का जन्मदाता भी कहते हैं। वह नौकरी डॉट कॉम, 99 एकर्स डॉट कॉम, जीवनसाथी डॉट कॉम और शिक्षा डॉट कॉम जैसे जाने-माने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के संस्थापक हैं। उनके दूरदर्शी नेतृत्व और समर्पण से न केवल भारत के रोजगार बाजार में क्रांति आई, बल्कि स्टार्टअप की दुनिया पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आर्थिक तंगी और अनिश्चित भविष्य के बावजूद, उनकी कहानी महत्वाकांक्षी आंत्रप्रेन्योर्स को अपने सपनों पर विश्वास करने और उन्हें हकीकत में बदलने के लिए अथक परिश्रम करने का पाठ पढ़ाती है। तपती गर्मी में की मार्केटिंग संजीव बिखचंदानी का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके परिवार का व्यापार या व्यापारियों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। पहली नौकरी में उन्हें एचएमएम या ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर के लिए हॉर्लिक्स की मार्केटिंग का काम सौंपा गया। सेंट स्टीफंस से अर्थशास्त्र में स्नातक और आईआईएम से पढ़ाई करने के बाद उन्हें तपती गर्मी में दिल्ली से कोसों दूर तमिलनाडु के मदुरै में सेल्समैन के साथ दुकान-दुकान जाकर ऐसा करना पड़ रहा था। उनके मन में ख्याल आया कि उन्होंने इस काम के लिए इतनी पढाई नहीं की थी। वह एक ऐसा इन्सान बनाना चाहते थे, जो अपने पीछे एक विरासत छोड़ जाए। इसके लिए वह कोई भी त्याग करने को तैयार थे। इसी हौसले के साथ उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

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