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संपादक
भोजराज सिंह पंवार
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बुधनी टाइम्स

इस दीपावली ये उपहार बांटें

असली मिठास सिर्फ़ मिठाई में नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में ख़ुशियां बांटने में छिपी है। यही देने का सुख जब दिलों को रोशन करता है, तब दीपावली और भी अर्थपूर्ण बन जाती है।देने का सुख ही सबसे बड़ा सुख है- चाहे वह मिठाई हो, कपड़े हों, छोटा-सा उपहार हो या अपना थोड़ा-सा समय। ‘जॉय ऑफ गिविंग’ सप्ताह (2-8 अक्टूबर) वह समय है जो सिखाता है कि जिस प्रकार एक दीया जलकर अंधेरे को मिटा देता है, वैसे ही हमारी छोटी-सी कोशिश दूसरों के और हमारे जीवन में भी उजाला भर सकती है। उजास दीयों का भी होता है और जीवन का उजाला मुस्कानों से भी, जो हम दूसरों के चेहरे पर बिखेरते हैं। बचपन की मुस्कान लौटाएं गली-मोहल्ले के छोटे-छोटे बच्चे जब पटाखों और खिलौनों की दुकान की तरफ चमकती आंखों से देखते हैं तो हमें भी याद आता है कि बचपन में हमारी ख़ुशी कितनी सस्ती और सरल थी। इस दिवाली हम चाहें तो कुछ बच्चों को ये ख़ुशी दिला सकते हैं। उनके लिए बोर्ड गेम्स, कॉमिक्स, क्रिकेट बैट या फुटबॉल भी किसी ख़ज़ाने से कम नहीं होंगे। किताबें, पेंसिलें, या रंग भरने की कॉपी उनके लिए त्योहार का सबसे अच्छा तोहफ़ा हो सकती है। छोटी मदद, बड़ी राहत हमारे मोहल्ले या अपार्टमेंट्स में कुछ ऐसे बुज़ुर्ग रहते हैं जिनके बच्चे दूर हैं। उनके लिए तो ‘समय’ का तोहफ़ा ही काफ़ी है। रोज़ शाम पांच-दस मिनट बैठकर उनकी बातें सुनना या जाड़े में उन्हें एक गर्म शॉल भेंट करना, इनमें कोई बड़ा ख़र्च नहीं है, पर उनके लिए यह अमूल्य है। इस दिवाली आप उन्हें उनके घर पर तोरण सजाने में मदद कर सकते हैं, पूजन सामग्री, फूल आदि लाकर दे सकते हैं, उन्हें सामूहिक दिवाली पार्टी में भी बुला सकते हैं। इसके अलावा, उनकी दवाई लेने में मदद करना, मोबाइल चलाना सिखाना या पुरानी फैमिली फोटोज़ प्रिंट करवाकर देना भी उनके लिए बड़ा तोहफ़ा है। पड़ोस भी ख़ुश और आप भी आजकल पड़ोस में मिलना-जुलना बहुत कम हो गया है। त्योहार इस दूरी को मिटाने का सही समय है। घर में बनी मिठाई या नमकीन एक छोटे डिब्बे में रखकर देना या बच्चों को साथ बैठाकर पुराने समय दिवाली की कहानियां सुनाना, रिश्तों में मिठास भरते हैं। कुछ लोग पौधे बांटते हैं, एक तुलसी का पौधा या मनी प्लांट भी उपहार में देने से घर और रिश्ते दोनों हरे-भरे रहते हैं। दिवाली में अपना प्यार जताएं हमारे पास ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड या ऑफिस बॉय हैं तो उनके लिए दिवाली बोनस जैसा तोहफ़ा- एक स्वेटर, मिठाई का डिब्बा या उनके बच्चों के लिए स्टेशनरी देना न भूलें। कभी-कभी ‘सम्मान के दो शब्द’ भी बड़ा उपहार होते हैं। काम आने वाले तोहफ़े घर की साफ़-सफ़ाई, झाड़ू-पोंछा, बर्तन करने वाली आंटी/दीदी की ज़िंदगी बहुत साधारण होती है। हमें अक्सर यह महसूस होता है कि उनके लिए छोटी-सी चीज़ भी बड़ी राहत बन सकती है। क्यों न दिवाली पर उन्हें साड़ी, उनके बच्चों के लिए स्कूल बैग, जूते-चप्पल या किताबें उपहार में दें। अगर संभव हो तो उनकी रसोई के लिए एक छोटा प्रेशर कुकर या स्टील के बर्तन दें, ये उनके सबसे ज़्यादा काम आएंगे। देने का एक और रूप सब तोहफ़े सिर्फ़ सामान ही नहीं होते। हम अपनी स्किल्स भी साझा कर सकते हैं। अगर आप अच्छी कुक हैं तो पड़ोस की किसी नई बहू को कोई आसान मिठाई बनाना सिखा दें। अगर आप पढ़ाई में अच्छे हैं तो मोहल्ले के बच्चों को एक-दो घंटे पढ़ा दें। इस दिवाली किसी के आंगन में रंगोली सजा दें। अगर आप टेक्नोलॉजी में माहिर हैं तो किसी बुज़ुर्ग को ऑनलाइन पेमेंट या वीडियो कॉल करना सिखा दें। क्यों ज़रूरी है यह ‘देना’? जब हम दूसरों को कुछ देते हैं तो दरअसल वह चीज़ सिर्फ़ उनके घर तक नहीं जाती, वह हमारे भीतर भी एक गर्माहट छोड़ जाती है। आम लोगों की ज़िंदगी में चाहे बहुत बड़ा वैभव न हो, लेकिन देने का दिल बहुत बड़ा हो सकता है। और यही दिल हमारे रिश्तों को रोशन करता है। इस दिवाली, घर की सजावट के साथ-साथ अपने मन को भी सजाइए। याद रखिए, दीप सिर्फ़ तेल और बाती से नहीं जलते, वे दूसरों की आंखों में चमक और मुस्कान से भी जगमगाते हैं।

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